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अम्लपित्त (Acidity) कारण और निवारण

अम्लपित्त (Acidity) कारण और निवारण

  • August 22, 2022
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अम्ल पित्त क्या होता है?


अम्लपित्त किसी स्वतंत्र रोग का नाम नहीं है | चरक तथा सुश्रुत्र ग्रंथों में अम्बल पित्त का वर्णन नहीं मिलता है |

जबकि माधव निदान व कषाय संहिता में इसका का वर्णन हुआ है|विशुद्ध आहार, सड़े पदार्थ पीत्त को कुपित करनेवाले

अन्न (पदार्थ) का सेवन करने से उसके अम्लपाक को प्राप्त हुआ पित्त जो कुपित होता है उसको अम्लपित्त कहते है |

आधुनिक रहन-सहन, मानसिक तनाव तथा फैशन परस्ती आदि ने आज कल चिकित्सकों के पास अम्लपित्त के रोगियों की

लाइन लगा दि है|शायद ही कोई परिवार हो जो इस रोग की चपेट में ना हो | आहार पाचन में मुख्यतः पित्त का कर्तव्य होता है |

पित्त स्वयं अम्ल गुणवाला नहीं होता है, विकृत होने पर अम्लता को प्राप्त होता है|जिस प्रकार दही के पात्र में दूध डाला जाए तो

दूध खट्टा होकर तत्काल फट जाता है ठीक उसी प्रकार अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रखने वाले लोग जब पहले का खाया अन्न पच

जाने से पूर्व ही पुनः खा लेते है तो पित्त कुपित होकर अम्लपित्त को जन्म देता है|अम्लपित्त (एसिडिटी) कारण और निवारण

अम्ल पित्त बढ़ने  क्या कारण है ?


आधुनिक जीवनशैली में रात्रि में देर तक जागना, दिन में देर तक सोना, उठते ही चाय (बेड टी) का सेवन करना, असमय व भूख

ना लगने पर भोजन करना या भूखे रहना, फास्टफूड, जंकफूड, तलें पदार्थो का सेवन, अत्यधिक ठूस-ठूस कर खाना, अति उष्ण,

अति ठंडे पदार्थ का सेवन एवं मेदा, खोवा (मव) से बनी मिठाइयों का सेवन ज्यादा शारीरिक एवं मानसिक वेंगो का निरोध करना,

मदिरा, धूम्रपान, अधिक मिर्च मसालों का सेवन, चिंता, भय, शोक आदि मानसिक विकारों का होना, एन्टीबायोटिक्स व दर्द निवारक

अंग्रेजी दवाओं का अत्यधिक प्रयोग आदि अम्लपित्त (एसिडिटी) रोग के जन्मदाता है | अम्लपित्त के प्रमुख कारण है| अम्लपित्त: मन्दाग्नि जन्य विकार है |

जठराग्नि मंद होने से अन्न का उचित पाचन नहीं होता | अतः अम्लपित्त उत्पन्न होता है |अम्लपित्त (एसिडिटी) कारण और निवारण

पित्त बढ़ने के लक्षण क्या है ?


भोजन का ना पचना, अमाशय में दाद एवं खट्टी डकारें आना, अमाशय में डालन होना, खट्टी वमन होना, शरीर में भारीपन, आलस्य थकान लगना,अधिक प्यास लगना, गभराहट, बेचेनी, पेट में गैस होना, जी मचलाना, पसीना आना, अनिंद्रा, आँखों के आगे अँधेरा छाना आदि अम्लपित्त के लक्षण है |अम्लपित्त (एसिडिटी) कारण और निवारण

पित्त बढ़ने के लक्षण क्या है ?


अम्लपित्त के रोगी का सर्वप्रथम शरीर शोधन आवश्यक है |

वमन, विरेचन क्रिया के द्वारा शरीर का शोधन करना चाहिए |

1. वमन कैसे करें ?

सैंधव लवण मदनफल, मजू तथा पटोल पत्र से वमन कराया जाता है |

2. विरेचन क्रिया कैसे करे?

हरितिकी चूर्ण (बड़ी हरडे का चूर्ण), आंवला चूर्ण आदि देकर पेट साफ करना चाहिए |

चिकित्सा :- सर्वप्रथम वमन विरेचन कराकर शोधन करें |अनुलोमन: अविपत्तिकर चूर्ण, अभयारिष्ट, त्रिफला चूर्ण, अम्ल्याकादी

चूर्ण का प्रयोग करे | प्रवाल पंचामृत, कुष्मांड खन्डाव्लेह तथा भूमिनिंब आदि क्वाथ का सेवन करना चाहिए | गुडूची सत्व (गिलोय सत्व),

शतावरी मंडूर, कामदुधारस, स्वर्णसुतशेखररस, सुतशेखररस आदि का प्रयोग अम्लपित्त रोग में रोगी के शरीर परीक्षण एवं रोग की

तीव्रता अनुसार कुशल चिकित्सक की देखरेख में करना हितावह है |अम्ल पित्त का उपचार डॉ. डी.पी. सिंह द्वारा जाने

अनुभूत प्रयोग :- सोंफ ६० ग्राम, कपूरकाचरी ६० ग्राम, मूलहठी (मरेठी), आँवला, सुखा धान्य, कम्मलकट्टा गिरी, सफ़ेद चन्दन,

इलाइची प्रत्येक ३०-३० ग्राम,सज्जीखार ३० ग्राम पीसकर रख लें| मात्रा : एक-एक चम्मच सुबह-शाम भोजन के बाद में परिक्षीत योग है|

नियमित दिनचर्या एवं संतुलित आहार-विहार अम्लपित्त रोग का सबसे पहला उपचार है |अम्लपित्त (एसिडिटी) कारण और निवारण

लेखक

डॉ.महेन्द्र सेठिया


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